लाशें ठिकाने लगाने को अम्बेडकरनगर बना है ठिकाना
-लावारिस लाशों के गुनाहगारों को सजा का इंतजार,
-लावारिस लाशों का डंपिंग ग्राउंड बना है अंबेडकरनगर
हैरानी! हत्यारे पुलिस की पकड़ से दूर
अम्बेडकरनगर
आए दिन लावारिस लाशों के मिलने का सिलसिला थमता नजर नहीं आ रहा है। वहीं दूसरी ओर सवाल पूछा जा रहा है कि लावारिस लाशों के गुनाहगारों को कब सजा मिलेगी। ऐसे अनेक केस हैं जिनमें गुनाहगारों को सजा तो दूर अभी केस का खुलासा तक नहीं हो सका है। अंबेडकरनगर की बात करें तो यह शहर लावारिस लाशों का डंपिंग ग्राउंड बनता जा रहा है।दरअसल हो यह रहा है कि दूसरे शहरों में हत्या जैसी जघन्य वारदातों काे अंजाम देने के बाद जिनको मारा जाता है उनकी लाश ठिकाने लगाने के लिए अम्बेडकरनगर ही ठिकाना बना हुआ है। लावारिस लाशों की यदि बात की जाए तो इसकी फेरिस्त बहुत लंबी है। अज्ञात लाशों के बारे में जहां तक बात है तो ज्यादातर में पुलिस दिलचस्पी दिखाने के टालमटोल करती नजर आती है। लावारिस लाशों की शिनाख्त कराना और वारदात के गुनाहगारों तक पहुंचना कोई आसान काम नहीं होता। सबसे बड़ी मुसीबत व ऊबाऊ भर तो अज्ञात शवों की शिनाख्त करना होता है। इसके लिए सालों गुजर जाते हैं। जब तक शिनाख्त होती है तब तक थाने में काफी कुछ बदल चुका होता है। फाइल पर धूल चढ़ जाती है। अंबेडकर नगर जनपद की सीमाओं से सटे अन्य जनपदों से जिससे जनपद क्षेत्र में लाश फेकने का बदमाशों को लाभ मिल जाता है। परिणाम यह होता है कि पुलिस सीमा को लेकर आपस में ही उलझ जाते हैं।पुलिस के पास काम का बोझ अधिक होने या फिर बिना किसी दबाव के अधिकारी या जांच अधिकारी कोई जिम्मेदारी नहीं लेता। लावारिश लाशों वाले केस में अमूमन तहकीकात करने पर पता चलता है कि वारदात को कहीं दूसरी जगह पर अंजाम दिया जाता है। लाश कहीं दूसरी जगह फेंकी जाती है। इतना ही नहीं अगर लाश की शिनाख्त हो गई, तो उसकी भी जगह बदली होती है। इतना सब कुछ होने के बाद गुमशुदगी की रिपोर्ट कहीं दूसरे थाने में दर्ज होती है। परिणाम यह होता है कि कानूनी बारिकियां और जटिलताओं के कारण केस अपने आप ही कमजोर हो जाता है। बांकी रही सही कसर पुलिस की जांच पूरी कर देती है। जिससे लावारिश लाश को पूरा न्याय नहीं मिल पाता।