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विचार मंत्रा: डिजिटल एडिक्शन की लत घातक

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"देश के प्रत्येक नागरिक को मुफ्त इंटरनेट का अधिकार देने वाले निजी विधेयक पर विचार की मंजूरी सरकार ने दी है। पिछड़े व दूरदराज के क्षेत्रों के वासियों तक इंटरनेट सुविधाओं के लिए किसी प्रकार के शुल्क या खर्च का भुगतान नहीं करना होगा।"

    राज्य सभा में यह विधेयक पहले ही पेश किया जा चुका है। दूरसंचार मंत्री के अनुसार राष्ट्रपति ने विधेयक पर विचार करने की सिफारिश की है। देश के पिछड़े व दूर-दराज के रहवासियों को समान रूप से इंटरनेट सुविधा प्रदान करने के यह विशेष उपाय सरकार करेगी। डिजिटल विभाजन को पाटना आवश्यक है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी नागरिकों का मौलिक अधिकार है। इसलिए उन्हें इंटरनेट का प्रयोग करने की सुविधा होना सकारात्मक सोच है।

   फोर्ब्स के अनुसार भारत में 2024 के शुरुआती दिनों में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले पूरी आबादी का 52 फीसद से अधिक हो चुके हैं। 36 फीसद ग्रामीण डिजिटल पेमेंट का प्रयोग कर रहे हैं। जो तेजी से बढ़ता ही जा रहा है।

   बिजली कटौती में आ रही कमी और नौजवानों की बढ़ती आबादी भी इसकी बुनियाद में है। तकनीक ने रोजमर्रा के जीवन में अपनी अहमियत तेजी से बढ़ाई है। शिक्षितों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है, जिसके चलते लोग स्मार्ट फोन, कंप्यूटर व अन्य डिवाइसों का इस्तेमाल करना सीख रहे हैं।

    मुफ्त इंटरनेट देने का सरकार फैसला सकारात्मक कहा जा सकता है। मगर यह ख्याल भी रखना जरूरी है कि जनता नेट में खोज क्या रही है? आम भारतीय इंटरनेट का इस्तेमाल पढाई, जानकारी या सूचनाओं को एकत्र करने की अपेक्षा मनोरंजन, सेक्सुअल कंटेंट व अनावश्यक चीजों के लिए अधिक करता है।

      गूगल द्वारा प्रयोगकर्ताओं की सालाना की गई खोजों की सूची में भारतीय वर्षो से पोर्न क्लिप की खोज में अव्वल आते हैं। मुफ्त इंटरनेट का प्रयोग यदि इसी तरह किया जाता रहा तो समाज में व्यभिचार बढ़ने की आशंका हो सकती है। इसमें खास तरह का फिल्टर लगाना भी उचित नहीं कहा जा सकता।

    नि:संदेह ये सेवाएं सरकार किसी निजी संचार सेवा से लेगी, जिसका भुगतान करने में मोटी राशि खर्च की जाएगी। अच्छा विचार होने के बावजूद इंटरनेट मुफ्त देने से डिजिटल एडिक्शन की लत घातक हो सकती है। हां, इसे कुछ अवधि के लिए मुफ्त किया जाना चाहिए था।

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