टूट चुके हैं कितने मोती.....
घर को छोड़ा पंख पसारा, सपनों को आकार दिया।
छूने को आकाश चले थे, तहखाने ने मार दिया।।
एक नहीं सौ तहखाने हैं, जिसमें सपने मरते हैं।
सत्ता को मतलब है इससे, उसने बहुमत पार किया।
घटना होती सत्ता जगती मुँह ढककर फिर सोती है।
पूरा जीवन वह रोता है, जिसका टूटा मोती है।
टूट चुके हैं कितने मोती, सत्ता की मक्कारी से।
फिर भी इनकी मक्कारी को, जनता सिर पर ढोती है।।
-डॉ. दुर्गेश श्रीवास्तव निर्भीक