मंगलवार को किस्मत बदलेगी। कुछ की प्रत्यक्ष तौर पर और कुछ की अप्रत्यक्ष तौर पर। आप और मैं, वे और हम – हम सब 'उनसे प्रभावित होंगे। 'उनसे मतलब वे जो अमेरिका के अगले राष्ट्रपति बनेंगे। कमला हैरेस या डोनाल्ड ट्रंप – इनमें से कोई भी राष्ट्रपति बने, पूरी दुनिया पर इसका असर होगा।
मुकाबला कड़ा है, कांटे का है, इतना नजदीकी है कि नतीजे का अनुमान लगाना असंभव है। कमला हैरेस और डोनाल्ड ट्रंप दोनों अपनी-अपनी शैली और रणनीति से मतदाताओं को अपने पक्ष में करने का प्रयास करते रहे हैं। अपने कुछ श्रोताओं को उन्होंने निराश किया है तो कुछ में उम्मीदें जगाईं। दोनों के चुनाव अभियान दिलचस्प, आकर्षक और मनोरंजक थे – शब्दों का मायाजाल था, हाजिरज़वाबी थी तो तीखी टिप्पणियां भी थी।
कमला हैरेस के पास माहौल को अपने अनुकूल बनाने के लिए केवल सौ दिन थे। चूंकि वे चुनावी मैदान में देर से उतरी, अत: उनके पास चुने जाने लायक उम्मीदवार की छवि बनाने के लिए अपेक्षाकृत कम समय था। इस थोड़े से समय में ही उन्होंने अपनी उन्मुक्त हंसी – जो चेहरे पर चिपकाई हुई नहीं लगती थी – और अपने आशावाद से सभी को मंत्रमुग्ध किया। उनके कारण चुनाव और चुनाव पर चर्चा में कुछ मसाला घुला और एक उबाऊ मुकाबला, दिलचस्प बन गया। इसका नतीजा यह हुआ कि उन्हें अरबों डालर चंदे के रूप में प्राप्त हुए, रिपब्लिकनों तक का अनुमोदन हासिल हुआ, वे लोकप्रिय पोडकास्टों एवं दिन में प्रसारित होने वाले टीवी और न्यूज नेटवर्कों पर अक्सर नजर आने लगीं और प्रभावशाली व्यक्तियों की पहली पसंद बन गईं। ओबामा से लेकर बियॉन्से, टेलर स्विफ्ट से लेकर हैरिसन फोर्ड, इकोनोमिस्ट से लेकर न्यूयार्क टाईम्स तक से कमला हैरिस को समर्थन और अनुमोदन मिला।
और दीपावली आते-आते उनकी जीत पक्की होती नजर आने लगी। हैरिस की ट्रंप पर कुछ प्रतिशत की बढ़त से यह महसूस होने लगा कि बदलाव का क्षण नजदीक आ रहा है।
लेकिन कमला का लगातार अपनी बातों को ट्रंप और उनकी जीत के खतरों पर केन्द्रित रखने और अपने सपनों के अमेरिका के बारे में लगभग कुछ न कहने से उनकी छवि धूमिल हुई है। खासतौर से पिछले कुछ दिनों में। पिछले कुछ समय से वे अपनी ब्रांड की राजनीति के लाभ गिनवाने की बजाय, डोनाल्ड ट्रम्प के खतरे गिनवाने लगी थीं। लोगों को अपनी प्रतिबद्धताओं और अपनी सोच से परिचित करवाने की बजाय वे जो बाइडन द्वारा तैयार की गई धुन गुनगुनाने लगी थीं – इस अशांत दौर में अमेरिका पीछे नहीं हट सकता।
इस बीच ट्रम्प वह कहते रहे जो जनता सुनना चाहती थी। उनका हाथ जनता की नब्ज़ पर था। उन्होंने 'अमरीकीवादÓ की धुन छेड़ डी। उनकी अपील भावनात्मक है, वे अमरीका को फिर से महान बनाने का नारा लगाते हैं, वे राष्ट्रवाद की बात करते हैं और अमेरिकी होने पर गर्व महसूस करने पर जोर देते हैं। वे दर्शन या इतिहास का हवाला नहीं देते। वे किसी मुद्दे की सूक्ष्म पड़ताल में यकीन नहीं रखते। वे मोटी-मोटी बात करते हैं, चिल्लाकर करते हैं और आपको डराते हैं। उनके आलोचक उन्हें पत्थरदिल, विक्षिप्त और तानाशाह बताते हैं – एक ऐसा व्यक्ति जो सत्ता में आते ही दुनिया को बर्बाद कर देगा और जो भी थोड़ी-बहुत शांति दुनिया में बनी हुई है, उसे भी ख़त्म कर देगा। मगर कुछ अन्यों के लिए ट्रम्प मसीहा हैं।
व्यवसायी और पॉडकास्ट मेजबान लांस वल्लानु ने ट्रम्प को 'दैवीय बर्बादीलाल बताया है – मतलब यह कि ईश्वर ने ट्रम्प को बर्बादी लाने के लिए चुना है। और हमारी-आपकी क्या बिसात कि हम ईश्वर या उसके प्रतिनिधि की योजना में खलल डाल सकें?
मगर ट्रम्प के भक्तों और राष्ट्रवाद के उपासकों को अगर हम छोड़ भी दें, तब भी यह साफ़ है कि ट्रम्प लोगों को यह भरोसा दिलवाने में सफल रहे हैं कि उनके कार्यकाल में अमरीका की खासी प्रतिष्ठा थी, दुनिया में कोई युद्ध नहीं चल रहा था, प्रवासी देश में नहीं घुस पाते थे और देश की अर्थव्यवस्था दिन-दूनी, रात-चौगुनी गति से बढ़ रही थी। उन्होंने सफलतापूर्वक यह नैरेटिव गढ़ लिया है कि जो बाइडन ने नेतृत्व में अमरीका की स्थिति डावांडोल है और हैरिस इसमें कोई बदलाव नहीं ला पाएंगी।
कमला हैरिस में आकर्षण और ग्लैमर हैं, उनमें जोश और उत्साह है मगर वे अपने चुनाव प्रचार के दौरान कभी स्वयं को जो बाइडन और उनके कार्यकाल से अलग नहीं कर पायीं। वे लोगों को यह नहीं समझा सकीं कि अगर वे सत्ता में आईं, तो वे अपने हिसाब से काम करेंगीं – उनका कार्यकाल बाइडन 2।0 नहीं होगा।
नतीजे में उनकी चमक फीकी पडऩे लगी। जब कमला हैरिस ने उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी तब क्षितिज पर एक नई सुबह की लालिमा नजऱ आ रही थी। बाइडन-हैरिस की जोड़ी का कोई काट नहीं है, ऐसा लग रहा था। और लोगों को बाइडन से ज्यादा उम्मीदें हैरिस से थी। मगर उपराष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल काफी फीका रहा। उत्साह जाता रहा और निराशा घर करती गई।
इसमें कोई संदेह नहीं कि एक गैर-श्वेत, एक महिला और एक भारतीय मूल के व्यक्ति को अमरीका के शीर्ष पर देखना सचमुच बहुत प्रसन्नता और संतोष का विषय होता – उतना ही जितना ऋषि सुनक का यूनाइटेड किंगडम का प्रधानमंत्री बनना था। मगर सच से तो मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। कमला लोगों में अपने प्रति आस्था नहीं जगा पाईं हैं। उनका नेतृत्व चमकदार नहीं नजऱ आता। वे अपने सतरंगी गठबंधन को ठीक से जोड़ नहीं सकीं हैं। अमरीका के भविष्य और उसके लक्ष्य के बारे में उनकी सोच एकतरफा नजऱ आती है। इजराइल-गाजा युद्ध के बारे में उनका दृष्टिकोण वे स्पष्ट नहीं कर सकीं हैं। वे कैसी दुनिया चाहती हैं, यह साफ़ नहीं है।
अगर हैरिस का मुकाबला ट्रम्प को छोड़कर किसी से भी होता तो वे बुरी तरह हारतीं। मगर जब बात भक्ति और ईश्वर के प्रतिनिधि की हो तब हैरिस बेहतर विकल्प नजऱ आतीं हैं। यही कारण है कि उन्हें समर्थन मिला मगर वह उसका पर्याप्त इस्तेमाल नहीं कर पाईं। फिर भी, अगर वे जीत जातीं हैं तो यह सचमुच कमाल होगा।
मंगलवार जो हम सबकी नियति का एक हिस्सा लिखा जाएगा – वह बुरा होगा, बहुत बुरा होगा या सबसे बुरा होगा यह देखा जाना बाकी है।
- श्रुति व्यास